BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

मंगलवार, 24 मार्च 2015

"भारतीय बच्चो के हाइकु "




 "भारतीय बच्चो के हाइकु " किताब भी अभी पढ़ी ।  न्यू अशोक नगर स्थित स्कूल राजकीय उच्चतम माध्यमिक बाल विद्यालय दिल्ली के बच्चो द्वारा रचित हाइकु  को  पुस्तक के रूप में सम्पादित और प्रकाशित किया हैआदरणीय जगदीश व्योम जीने  |  आदरणीया डॉ अंजलि देवधर जी द्वारा इंग्लिश  अनुवादित किया गया  । विद्यालय  के कुछ बच्चो का ध्यान पढ़ाई से भटकने पर दंड स्वरुप  व्योम जी ने उन्हें प्रकृति से जोड़ते हुए कुछ लिखने की प्रेरणा दी | सकारात्मक परिणाम मिलने पर  उन्होंने अजंलि देवधर जी के साथ मिल उन बच्चो को लेखन और हाइकू की कुछ बारीकियां सिखाई। बच्चो ने मनोयोग से इसमें भाग लिया और सहज मन की कोमल अभिव्यक्तियों को पन्नो पर उकेरना शुरू किया जिसका परिणाम   पुस्तक "भारतीय हाइकू" जगत ही नही विश्व हाइकू पटल पर एक अनुपम उपहार के रूप में उभर कर सामने आई है ।   पुस्तक के प्रथम भाग में हाइकू क्या है और उसकी बारीकियों को भी बताया गया है जो  बच्चो ही नही हम जैसे हाइकु सीखने  वालो के लिए भी  उपयोगी  है । 
आपके मार्गदर्शन में बच्चो ने बहुत ही सुंदरता से अपने मनोभावों को प्रस्तुत किया है। छोटे छोटे बच्चे कितनी गहन संवेदनाओ को मन में छिपाए होते है जो हमें यूँ ही नही दीखते या जिन्हे वो व्यक्त करने में असमर्थ होते है पर इनके माध्यम से वो बाते सामने आई है । बच्चे मन के सच्चे। बनावट और दुनियादारी से दूर प्रकृति से जल्दी जुड़ जाते है उनके ये हाइकू उनके मन के बिलकुल करीब और सच्ची भावनाओ को दर्शाते है । यूँ तो सभी  खुबसुरत  है  पर कुछ जो बहुत पसंद आये मन को छू गए। …
 तने खड़े है
नीम के नन्हे बच्चे
नीम के नीचे - राजू कुमार पाण्डेय कक्षा - ७

बंदी है तोता
गाली देता ही होगा
मिर्च खाकर - सौरभ शर्मा  कक्षा - ८

मम्मी करती
कोठी में झाड़ू पोंछा
टूट जाता मैं - झन्टू कक्षा - १०

नहीं लगती
गंगाजल में काई
पवित्र नदी - हिमांशु कुमार कक्षा ८

कुत्ते लड़ते
इलाके छीनने को
लहूलुहान  - शुभम राणा कक्षा -८

तितली उड़ी
आँखे भी उडी संग
उसके पीछे - कुपदीप सिंह कक्षा - ८

लड़ते खूब
आपस में कौए भी
रहते साथ - अभिजीत कक्षा ८

आंधी में गिरा
मेरे द्वारे का नीम
दोस्त था मेरा - प्रकाश कार्मोकार कक्षा -८

मेरी झोपडी
दिख जाते है तारे
लेटे लेटे भी - मनोज कुमार कक्षा -९

पटाखे चले
धुएं से भर गया
पूरा आकाश - अखिलेश शर्मा कक्षा -६

मेरी किताबे
मुझसे बतियाती
जीना  सिखाती- अखिलेश शर्मा कक्षा -६

छिप जाते है
सूर्य  की रौशनी में
 तेज तारे भी - प्रिंस कुमार कक्षा - ६

कुछ कविताये जो हाइकु के नियमो का पालन नही करती छोटी कविताये -

तूफ़ान आया
उड़ा  ले गया घर
चिडिया उदास - जुनैद आलम कक्षा ८

पेड़ गिरा रहे
अपने पत्ते घास पर
नए पत्ते की चाह  में - राजू कुमार पाण्डेय कक्षा -७

ढक  लिया पत्तो ने शरीर
कीड़ो की आवाज़ को
नहीं ढक पाये पत्ते - अभिषेक पाण्डेय कक्षा - ९ 


आसमान के नीचे
सूखे पेड़ की डाली
चिंतामग्न एक कौआ - अभिषेक मिश्रा कक्षा ९


उड़ कर पहुंच गया
पेड़ की फुनगी पर
चिड़ियों के साथ  - अभिजीत कक्षा ८

रोपता रहा
रात भर धन की पौध
पानी भरे खेत में -कुलदीप सिंह कक्षा ८

उजली रात
बाते करती रहीं नुझसे
पेड़ की नन्ही पट्टी -विकास कुमार कक्षा - ९

चकित भाव से एक बात मैं  ईमानदारी से  स्वीकार करना चाहती हूँ इनमे से कई हाइकु ऐसे है जो कई दिनों से मैं लिखने की कोशिश कर रही थी पर नही लिख पायी जिन्हे इन बच्चो ने कितनी आसानी से सहज शब्दों में लिख डाला ।बच्चे सहजता से कितना कुछ सीखा देते है । ये रचना उनके दिल तक जाने का एक रास्ता है । उम्मीद है इनका भविष्य उज्जल होगा  और यही आशीष भी इन मासूमो को ।




सोमवार, 23 मार्च 2015

"हाइकु समारोह " की झलकियाँ


 शुभ संध्या दोस्तों ,
कल दिनांक २२-३-२०१५ को आदरणीय जगदीश व्योम जी के संयोजन  में हाइकु आधारित   राजकीय उच्चतम माध्यमिक बाल विद्यालय नयू अशोक नगर दिल्लीमें आयोजित  "हाइकु समारोह " का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला । ये आजोजन अपने आप में बहुत सी खूबियों को समेटे हुए भारतीय हाइकु के क्षेत्र में एक यादगार और ऐतिहासिक आयोजन ही माना  जायेगा ।क्युकी इसमें पहली बार हाइकु की तीन पीढ़ियाँ एक साथ एक जगह पर इकट्ठा हुयी और हाइकु पर सार्थक परिचर्चा हुयी । वरिष्ठ जनो  के अनुभव और ज्ञान का लाभ उठाने का ये सुनहरा मौका मुझे मिला जिसके लिए व्योम सर जी की आभारी हूँ । कार्यक्रम की अध्यक्षता की आदरणीय लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी ने ,मुख्य अतिथि थीं आदरणीया डॉ अंजलि देवधर जी , । विशिष्ट अतिथि के तौर पर आदरणीय कमलेश्ा भट्ट "कमल " जी ,एवं आदरणीया  उनिता सच्चिदानंद जी, ग आमंत्रित थीं  जिन्होंने हाइकु पर सार्थक चर्चा भी की ।
समारोह का मुख्य आकर्षण   राजकीय उच्चतम माध्यमिक बाल विद्यालय नयू अशोक नगर दिल्लीके बच्चो द्वारा लिखे गए हाइकुओ का संकलन "भारतीय बच्चो के हाइकु " का विमोचन था । इस पुस्तक का सम्पादन व्योम जी ने किया है और हाइकु का अंग्रेजी अनुवाद डॉ अंजलि देवधर जी ने किया है । हाइकु के लिए समर्पित व्योम जी का ये कदम अनुकरणीय है और हाइकु के क्षेत्र में एक अनुपम उपहार । नन्हे नन्हे बच्चे जिनके कदम भटकने लगे उन्हें सृजन शीलता की तरफ मोड़ कर उनमे परिवर्तन लाने की ये नायाब  कोशिश एक उदहारण है आज के शिक्षा जगत के लिए भी शिक्षको के लिए भी । बच्चो ने सरस्वती वंदना सुना कर और अतिथियों ने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की । पुस्तक के विमोचन के बाद बच्चो ने अपने हाइकु भी सुनाये । हाइकु पर आधारित पुस्तको की प्रदर्शनी भी लगायी गयी थी । और साथ ही हाइकू पर बनी लघु फिल्मे भी दिखाई गयी । भारतीय हाइकु के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले JNU के प्रोफेसर डॉ सत्यभूषण वर्मा जी को उस फिल्म में देखना और सुनना निःसंदेह प्रत्येक हाइकुकार को एक सुखद और रोमांचक  अनुभूति दे गया होगा ।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ अंजलि देवधर जी ने पावर पॉइंट प्रेजेन्टेशन के माध्यम से बच्चो के लिखे हाइकु भावपूर्ण चित्रो के साथ प्रस्तुत किये ।
इस कार्यक्रम में देल्ही  और आस पास से कई हाइकुकार और हाइकुप्रेमीओ ने हिस्सा लिया।  जिनमे डॉ राजीव गोयल जी , अरुण रुहेला जी , शोभना मित्तल जी ,रामकिशोर उपाध्याय जी , आर पी. सारस्वत जी ,सुजाता शिवेन जी , गीता पंडित जी , अवनीश चौहान जी यशपालसिंह जी संतोष कुमार सिंह जी , शिव मूर्ति तिवारी जी ,सुनील कुमार जी ,रणधीरजी  , शबाब हैदर जी ,   गुंजन अग्रवाल नाम प्रमुख है ।शोभना जी कई दिनों से अस्वस्थता के बाबजूद भी मेरे एक बार कहने से ही आ गयी। .उनका  ये स्नेह और हाइकू के प्रति प्रेम प्रेरणा देने वाला है । इसके अल्वा लखनऊ से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने कुछ सीखने सीखाने के उद्देश्य से आई आभा खरे जी से मिलने का सौभागय प्राप्त हुआ । बहुत ही प्यारी ये सखी बरबस सबको अपना बना लेती है ।  इन सभी रचनाकारो  ने अपने हाइकु  प्रस्तुत किये ।
समारोह के अंत में विशिष्ट अतिथितियो ने  अपने सम्बोधन के दौरान बताया की हाइकु एक गहन विधा है । ये अनुभूतियों पर आधारित होता है इसमें कही न कही आप स्वयं भी छुपे होते है । एक हाइकू लिखने में कभी एक क्षण तो कभी कई साल भी लग सकते है । यह प्रकृति से जुड़ा काव्य है जो प्रकृति को मानव संवेदना से जोड़ता है । पर कुछ पुराने उपमाओं उपमानों तक सीमित न होकर नए प्रयोग जरुरी है । जीवन में हर क्षेत्र में हर घटना में हर वस्तु में हाइकू की विषय वस्तु मिल सकती है बस नजरिया होना चाहिए ।
अंत में आदरणीय व्योम सर जी ने इस आशा से सबका धन्यवाद ज्ञापन किया की इस तरह का समारोह साल में एक बार जरूर आयोजित किया जाना चाहिए । और ये कोशिश जारी रहेगी । एक बार पुनः व्योम सर जी का दिल से आभार मुझे इस महत्वपूर्ण यादगार समारोह का हिस्सा बनने का मौका देने के लिए । 












शनिवार, 21 मार्च 2015

चटकी पारिजात


१)
प्रीत का सार 
सर्वस्व समर्पण 
हरसिंगार । 
२) 
बिछाये धरा
पारिजात गलीचा 
 भोर की राह । 
३) 
भीनी सी रात  
चटकी पारिजात 
महकी हवा । 
४) 
निशब्द रात 
झड़ी हरसिंगार 
यौवन लूटा  । 
५) 
धरा रमणी 
पारिजात गजरा 
दुल्हन बनी । 
६) 
हरसिंगार 
वेणी गुँथे वसुधा 
लुभाये पिया । 


मंगलवार, 17 मार्च 2015

सत्य की राह


आओ सिखा दूँ
सच झूठ बनाना
मैं कानून हूँ
सत्य अकेला
झूठ खड़ा झुंड मे
मचाये हल्ला
सत्य की राह
कठिन है डगर
सुख की छाँह
सत्य आसान
दिमागी कसरत
झूट पुराण
सत्य चीखता
बधिर न्यायलय
साक्ष्य मांगता

रविवार, 8 मार्च 2015

नारी


पर्वत गोदी
बाबुल का आँगन
खेलती नदी

चीरती चली
रूढीयों का पर्वत
घायल नदी

धीर पर्वत
कभी चंचल नदी
नारी का चित्त

ढ़ो  रही हवा
कलियों का क्रंदन
जंगल मौन

प्रतीक्षा रत
उर्मिला ,यशोधरा
संघर्ष रत

बदली सदी
जीर्ण तटों  से बँधी
कराहे   नदी

आधी आबादी
सशक्त ,सुशिक्षित
होंगे शेष भी / नींव  सुदृढ़

आये न राम                                     
प्रतीक्षा में अहिल्या
रही  पाषाण

लांघे जो रेखा
हो जाती  रामायण
 साक्षी सदियाँ

नारी पुरुष
रथ के दो  पहिये
जीवन चले

चढ़ी फुनगी
चपल चारु लता
वृक्ष सहारा

दे दी आजादी
पग पायल बाँध
हाथ बेड़ियाँ

         





गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली मिलन



टेसू न खिले

मले  कृत्रिम रँग
चेहरे जले
कोरी अंगियाँ
मनवा रंग गये
नैनों से सैयां

मंजीरा ,चंग
ठिठोलियाँ ,चुहल
फागुन रंग
देती प्रकृति
भांति भांति के रंग
प्रेम सन्देश
विविध रंग
संदेशा प्रकृति का
प्रेम की छटा

भर उमँग
खेले हाइकु होली 
विविध रंग.| गोपी अरज 
खेलो होरी साँवरे
मन बिरजभूलो सजन
शिकवा शिकायत 
होली मिलन
रंग दी भौजी
सजन मनमौजी
घुंघट बैरी

यारो के संग 
त्योहारों की उमंग 
भंग तरंग
शर्मायी गोरी
बिखरे गालो पर
रंग सिंदूरी


उदास गोरी
बीता जाए फागुन
चुनर कोरी
उदास गोरी
सजना नही आए
चुनर कोरी
नशीले नैन 
बहकाती कदम 
प्रीत मदिरा

श्यामल गात
प्रीत गुलाल लगा
रहा निखर
दहक रहा
महंगाई का रंग
सिमटा फाग
सजनी धरा
अपने रंग रँगे
अम्बर पिया
होली दहन 
जले द्वेष  ,मलाल 
मन फागुन

धर दो बोली
न होगी बरजोरी
तो खेले होली

न्योतो कन्हाई
बरसाने की छोरी
लट्ठ सजाई  

रविवार, 1 मार्च 2015

"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "-औरत के हक़ में एक संवाद

सफी आरा की स्मृति में निदान फाऊँडेशन द्वारा आयोजित
"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "
(औरत के हक़ में एक संवाद )
२७/०२ २०१५
एवं
सन्निधि संगोष्ठी द्वारा आयोजित" यात्रा संस्मरण"विषय पर आयोजित   कार्यक्रम (२८/०२/२०१५ ) की कुछ झलकियाँ एवं  प्रस्तुत की गयी मेरी रचनाये
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 प्रिय सखी किरण आर्य को दिल से आभार व्यक्त करती हूँ जिसने मुझेइस वर्ष  फिर से मौका दिया सफी आरा की स्मृति में निदान फाऊँडेशन द्वारा आयोजित "हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "(औरत के हक़ में एक संवाद )२७/०२ २०१५ एवं सन्निधि संगोष्ठी द्वारा आयोजित" यात्रा संस्मरण"विषय पर आयोजित कार्यक्रम (२८/०२/२०१५ ) का हिस्सा बनने का । कोशिश करती हूँ किरण जिन उम्मीदों से मुझे ये मौका देती है उन पर १% भी खरी उतर  पाऊँ । इन कार्यकर्मो में जाने का सबसे ज्यादा फायदा या मेरा लालच कहिये ये होता है की कई नए और वरिष्ठ रचनाकारों से मिलने  उनसे बातचीत के जरिये कुछ सीखने  का मौका मिलता है । फेस बुक के जरिये हम जिनसे मिले है उनसे रु -ब-रु मिलना एक सुखद अनुभूति होती है और लगता ही नही की पहली बार मिल रहे है।  लगता है हम पुरानी सखियाँ ही  मिल रही है बहुत दिनों के बाद । इस बार इसी कड़ी में आभा खरे जी, सीमा अग्रवाल दी, मीरा शलभ दी, परी एम श्लोक  से मिलना एक यादगार पल बन गया । आभा जी का मुझे पहचान कर स्वयं से आ कर मिलना और "पहचाना मुझे "कहना  जहाँ एक और मुझे काफी रोमांचित और सुखद अनुभूति दे गया वही उन्हेंदेखते ही  नही पहचान पाने पर एक शर्मिंदगी का एहसास भी :( । उसी तरह सीमा दी मीरा दी दोनों मेरे पीछे की कुर्सी पर ही बैठी थी मेने उनसे उनका परिचय जानने के लिए जब पीछे मुड़  कर उनके पास बैठी एक मित्र से (जिनका नाम फिर अभी भूल गयी :( )उनका नाम [पूछ जब अपना नाम बताया की फेस बुक पर लोग मुझे  "नेह सुनीता " के नाम से जानते है और वैसे मेरा नाम "सुनीता अग्रवाल " है इतना सुनते ही पास बैठी सीमा दी और मीरा दी एक साथ मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली "ओह तुम नेह हो। . " और फिर उन्होंने अपना परिचय दिया यकीं मानिये कितनी ख़ुशी हुयी उस पल मुझे इन दोनों से कभी मिलना होगा इस तरह क्योकि सोचा ही नही था सीमा दी तो डेल्ही से बहार रहती है   सौभाग्य से वो उस दिन आई हुयी थी कुछ दिनों के लिए डेल्ही और किरण के बुलावे पर इस कार्यक्रम का हिस्सा  बनने आई थी । उसी तरह परी  एम श्लोक से भी दिपचस्प  मुलाकात मेरी गूगल प्लस में हुयी थी उनकी एक रचना चोरी होने पर । जिसकी सुचना उन्होंने गूगल प्लस में दी थी वही पर मेरी उनकी बात चीत हुयी थी। ंऐने उनके ब्लॉग को जॉइन किया हुआ था अक्सर उनकी लेखनी के जरिये उनसे मिलती रहती थी । अचानक प्रोग्राम में उसे देख अचम्भित रह गयी । पर फिर जा कर इस प्यारी सी दोस्त से मिली । सच में ये दो दिन यादगार बन गए।  एक बार फिर से
शुक्रिया किरण दिल से  :)……
"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "
(औरत के हक़ में एक संवाद )
में मेरे द्वारा प्रस्तुत  किये गए हाइकु  आपकी समीक्षा एवं सुझाव के लिए :-
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 १)
बिटिया मेरी
न चाँद का टुकड़ा
है वो चाँदनी
२)
पग पराग
पंख धरे सपने
तितली उड़े
३ )
बीज वाँछना
मंजरी तो धर दी
प्रभु चरना
४)
खोयी जो नदी
रेत  ,नमक लिए
रोयेगी सृष्टि
५)
तीर्थ वो घर
पावन त्रिवेणियाँ
सुखी जिधर
६)
नुपुर शोर
गूंजे दिग दिगंत
हो रही भोर
७)
किन्नर गावें
बधाई ,लक्ष्मी जाई
दिन वो आवे
८ )
रोली न हिना
बन दीप जलना
तम हरना
९ )
कराहे अंश
मुझको जीना है माँ
भर  लो अंक
मैं तुलसी निर्दोष
पावन गंगा जल



 किरण आर्य ,सीमा अग्रवाल दी ,गुंजन अग्रवाल और मैं (निदान फाउंडेशन )



 सुशीला शिवराण दी मैं किरण आर्य आभा खरे जी एवं गुंजन अग्रवाल (सन्निधि संगोष्ठी )
 कई लोगो के नाम भूल गयी उनसे माफ़ी चाहती  हूँ :(
परी  एम श्लोक ,किरण ,मीरा शलभ जी सुशीला शिवराण दी ,शोभना मित्तल जी सरिता भाटिया जी गुणज्ञ और मैं (निदान फाउंडेशन )