पर्वत गोदी
बाबुल का आँगन
खेलती नदी
चीरती चली
रूढीयों का पर्वत
घायल नदी
धीर पर्वत
कभी चंचल नदी
नारी का चित्त
ढ़ो रही हवा
कलियों का क्रंदन
जंगल मौन
प्रतीक्षा रत
उर्मिला ,यशोधरा
संघर्ष रत
बदली सदी
जीर्ण तटों से बँधी
कराहे नदी
आधी आबादी
सशक्त ,सुशिक्षित
होंगे शेष भी / नींव सुदृढ़
आये न राम
प्रतीक्षा में अहिल्या
रही पाषाण
लांघे जो रेखा
हो जाती रामायण
साक्षी सदियाँ
नारी पुरुष
रथ के दो पहिये
जीवन चले
चढ़ी फुनगी
चपल चारु लता
वृक्ष सहारा
दे दी आजादी
पग पायल बाँध
हाथ बेड़ियाँ
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