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रविवार, 1 मार्च 2015

"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "-औरत के हक़ में एक संवाद

सफी आरा की स्मृति में निदान फाऊँडेशन द्वारा आयोजित
"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "
(औरत के हक़ में एक संवाद )
२७/०२ २०१५
एवं
सन्निधि संगोष्ठी द्वारा आयोजित" यात्रा संस्मरण"विषय पर आयोजित   कार्यक्रम (२८/०२/२०१५ ) की कुछ झलकियाँ एवं  प्रस्तुत की गयी मेरी रचनाये
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 प्रिय सखी किरण आर्य को दिल से आभार व्यक्त करती हूँ जिसने मुझेइस वर्ष  फिर से मौका दिया सफी आरा की स्मृति में निदान फाऊँडेशन द्वारा आयोजित "हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "(औरत के हक़ में एक संवाद )२७/०२ २०१५ एवं सन्निधि संगोष्ठी द्वारा आयोजित" यात्रा संस्मरण"विषय पर आयोजित कार्यक्रम (२८/०२/२०१५ ) का हिस्सा बनने का । कोशिश करती हूँ किरण जिन उम्मीदों से मुझे ये मौका देती है उन पर १% भी खरी उतर  पाऊँ । इन कार्यकर्मो में जाने का सबसे ज्यादा फायदा या मेरा लालच कहिये ये होता है की कई नए और वरिष्ठ रचनाकारों से मिलने  उनसे बातचीत के जरिये कुछ सीखने  का मौका मिलता है । फेस बुक के जरिये हम जिनसे मिले है उनसे रु -ब-रु मिलना एक सुखद अनुभूति होती है और लगता ही नही की पहली बार मिल रहे है।  लगता है हम पुरानी सखियाँ ही  मिल रही है बहुत दिनों के बाद । इस बार इसी कड़ी में आभा खरे जी, सीमा अग्रवाल दी, मीरा शलभ दी, परी एम श्लोक  से मिलना एक यादगार पल बन गया । आभा जी का मुझे पहचान कर स्वयं से आ कर मिलना और "पहचाना मुझे "कहना  जहाँ एक और मुझे काफी रोमांचित और सुखद अनुभूति दे गया वही उन्हेंदेखते ही  नही पहचान पाने पर एक शर्मिंदगी का एहसास भी :( । उसी तरह सीमा दी मीरा दी दोनों मेरे पीछे की कुर्सी पर ही बैठी थी मेने उनसे उनका परिचय जानने के लिए जब पीछे मुड़  कर उनके पास बैठी एक मित्र से (जिनका नाम फिर अभी भूल गयी :( )उनका नाम [पूछ जब अपना नाम बताया की फेस बुक पर लोग मुझे  "नेह सुनीता " के नाम से जानते है और वैसे मेरा नाम "सुनीता अग्रवाल " है इतना सुनते ही पास बैठी सीमा दी और मीरा दी एक साथ मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली "ओह तुम नेह हो। . " और फिर उन्होंने अपना परिचय दिया यकीं मानिये कितनी ख़ुशी हुयी उस पल मुझे इन दोनों से कभी मिलना होगा इस तरह क्योकि सोचा ही नही था सीमा दी तो डेल्ही से बहार रहती है   सौभाग्य से वो उस दिन आई हुयी थी कुछ दिनों के लिए डेल्ही और किरण के बुलावे पर इस कार्यक्रम का हिस्सा  बनने आई थी । उसी तरह परी  एम श्लोक से भी दिपचस्प  मुलाकात मेरी गूगल प्लस में हुयी थी उनकी एक रचना चोरी होने पर । जिसकी सुचना उन्होंने गूगल प्लस में दी थी वही पर मेरी उनकी बात चीत हुयी थी। ंऐने उनके ब्लॉग को जॉइन किया हुआ था अक्सर उनकी लेखनी के जरिये उनसे मिलती रहती थी । अचानक प्रोग्राम में उसे देख अचम्भित रह गयी । पर फिर जा कर इस प्यारी सी दोस्त से मिली । सच में ये दो दिन यादगार बन गए।  एक बार फिर से
शुक्रिया किरण दिल से  :)……
"हम बचेंगे ,हम पढ़ेंगे ,हम बढ़ेंगे "
(औरत के हक़ में एक संवाद )
में मेरे द्वारा प्रस्तुत  किये गए हाइकु  आपकी समीक्षा एवं सुझाव के लिए :-
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 १)
बिटिया मेरी
न चाँद का टुकड़ा
है वो चाँदनी
२)
पग पराग
पंख धरे सपने
तितली उड़े
३ )
बीज वाँछना
मंजरी तो धर दी
प्रभु चरना
४)
खोयी जो नदी
रेत  ,नमक लिए
रोयेगी सृष्टि
५)
तीर्थ वो घर
पावन त्रिवेणियाँ
सुखी जिधर
६)
नुपुर शोर
गूंजे दिग दिगंत
हो रही भोर
७)
किन्नर गावें
बधाई ,लक्ष्मी जाई
दिन वो आवे
८ )
रोली न हिना
बन दीप जलना
तम हरना
९ )
कराहे अंश
मुझको जीना है माँ
भर  लो अंक
मैं तुलसी निर्दोष
पावन गंगा जल



 किरण आर्य ,सीमा अग्रवाल दी ,गुंजन अग्रवाल और मैं (निदान फाउंडेशन )



 सुशीला शिवराण दी मैं किरण आर्य आभा खरे जी एवं गुंजन अग्रवाल (सन्निधि संगोष्ठी )
 कई लोगो के नाम भूल गयी उनसे माफ़ी चाहती  हूँ :(
परी  एम श्लोक ,किरण ,मीरा शलभ जी सुशीला शिवराण दी ,शोभना मित्तल जी सरिता भाटिया जी गुणज्ञ और मैं (निदान फाउंडेशन )

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