BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

सोमवार, 22 सितंबर 2014

कोई न सगा



बोंजाई बने 
बरगद से रिश्ते 
सिमटी छाया 

आँधी  थी भली 
साथ उड़ा  ले गई 
रिश्ते नकली 

 रोती  गुड़िया
किताबो में खो गयी    
नन्हीं परियां      

जीवित रिश्ते 
लड़ते झगड़ते 
मुर्दा न बोले 

उधडे रिश्ते 
जतन से सिलती 
जोड़ दिखते 

धूप प्रखर 
लम्बी परछाईंयां 
दुबकी  घर 


कोई न सगा
साये भी देते दगा
दिन ढलते