एक तरफ देशवासी जहाँ आरक्षण ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इत्यादि मुद्दों को ले कर सड़क जाम , बवाल तोड़फोड़ ,नारेबाजी ,आरोप प्रत्यारोप में व्यस्त है नेता अपनी कुर्सी की चिंता में वोटो की राजनीती में व्यस्त है ठीक ऐसे समय में भारत माँ का एक सच्चा सपूत अपने इन्ही भाई बन्दों की सलामती के लिए अपने आप को कुर्बान कर देता है आतंकियों से लड़ते लड़ते। . इसे सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य की ये उसी हरियाणा राज्य का निवासी था जींद शहर का रहने वाला जहा के लोगो ने अभी आरक्षण की मांग को लेकर देश में आतंक का माहौल बना रखा है और सभी रास्ते भी बंद किये हुए है और देश के इस सपूत की धरती अपने बेटे के पार्थिव शरीर की राह देख रही है जो अपने गांव पहुचने के लिए इस बंद से जूझ रही है । क्या ये ही है हमारी संस्कृति ? क्या ये दुर्भाग्यपूर्ण नही? .किसके पूछे जनाब यहाँ तो संवेदनाये ही दफ़न हो चुकी विवेक ने इस देश का दामन शायद छोड़ दिया है
हे सपूत नमन
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कैसे भेजूं मैं
शहीद को नमन
भारत बंद
हे सपूत नमन
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कैसे भेजूं मैं
शहीद को नमन
भारत बंद
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