BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

बुधवार, 17 जून 2015

बोझिल बचपन



बस्ते से दबा
बोझिल बचपन
खो रहे स्वप्न ।

झरते पत्ते
छात्रावास प्रांगण
सहेजे बच्चे ।
अम्मा के नाम
छात्रावास से पाती
थे कुछ पत्ते।
सहेजे पत्ते
छात्रावास में बच्चे
 दर्द एक सा ।

नही आवारा
भटकता पल्लव
भाग्य का मारा ।

शाख से जुदा
उड़ा हवा में पत्ता
है मनचला ।
शाख से गिरा
थामें धरा आँचल
कांपता पात ।

बनेगे खाद
टूटे कोमल पात
थामे जो धरा ।

कोमल पात
हुआ शाख से जुदा
ले उडी हवा ।

उड़ता पत्ता
अटका झाड़ियो में 
पानी में गत्ता ।

भटके पात
बरगला ले गयी
आतंकी वात ।


     


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