शास्वत प्रेम
राधा कृष्ण मिलन
शेष फरेब
महाभारत
रामायण की कथा
इश्क ने गढ़े
करुना प्रेम
डूबे उतरे जहां
इश्क का मर्म ।धर्म
हुई जो बर्षा
धुले गिले शिकवे
मनवा हर्षा
इश्क की अदा
निभाए वादे वफा
शत्रु से सदा
देकर दिल
खरीद लिया दर्द
जीना मुश्किल
प्रेम तपस्या
सदियों की साधना
चिर प्रतीक्षा ।मूक वेदना
मौन अधर
छलछलाते नैन
कथासागर/ इश्क सागर
कोरे कागज
मुट्ठी भर अक्षर
प्रेम अनंत
इश्क दरिया
विश्वास पतवार
माँझी है जिया
तप्त धरती
पड़ी बूंद स्वाति की
क्षणिक तृप्ति
स्नेहिल स्पर्श
मिटे गिले शिकवे
दिल आबाद
पसरा मौन
दिलो के दरमियाँ
मुखर नैन
बरसे घन
ह्रदय मरुस्थल
खिले सुमन
तड़पे पन्ने
सिसकती लेखनी
इश्क बेजुबाँ
जला पतिंगा
घुटती रही शमा
इश्क है सजा
आया सावन
घिरे नही बदरा । लौटे नही बदरा
बरसे नैन
प्रीत के गीत
नयन पृष्ठ लिखे
पढ़ लो मीत
इश्क है रब
खूबसूरत झूट
कहते सब
दिल तिजोरी
उम्र भर सम्हाले
इश्क जागीर
मन मंदिर
जले प्रीत के दीप
नेह की बाती
खटखटाते
तेरे मन का द्वार
बेबस हाथ
जलाया मैंने
एक प्रीत का दीप
सम्हालो तुम
नहीं चाहिए
वफा जफा का लेखा
प्रेम अमर
बाकी है आस
फिर उठे पलके
फैले उजास
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