बनी है बाती
चंद बूँदें रक्त की
जले चिराग
जिन्दा है अभी
मानवता के बीज
खिलेंगे कभी
कोई बो रहा
मानवता के बीज
बनो बदरा /सींच दो जरा
प्यास बुझाती
उदारमना नदी
पूछे न जाति
ताप संगत
खिले गुलमोहर
नव रंगत
खोलो खिड़की
दस्तक देता रवि
धुंध को चीर
रौशनी लाई
पर्दे से छन आई
महीन धूप
सूखती बाती
टिमटिमाता दीप
तेल की आस
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