BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

मानवता के बीज


बनी है बाती
चंद बूँदें रक्त की 
जले चिराग

जिन्दा है अभी 
मानवता के बीज 
खिलेंगे कभी 

कोई बो रहा 
मानवता के बीज 
बनो बदरा /सींच दो जरा 

प्यास बुझाती 
उदारमना नदी 
पूछे न जाति 

ताप संगत 
खिले गुलमोहर 
नव रंगत 

खोलो खिड़की 
दस्तक देता रवि 
धुंध को चीर 

रौशनी लाई 
पर्दे से छन आई 
महीन धूप 

सूखती बाती 
टिमटिमाता दीप 
तेल की आस 


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