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अरुन शर्मा 'अनन्त'
बुधवार, 16 अप्रैल 2014
प्रेम तुम्हारा
दर्द देते है
दुआओं में लपेट
अपने ही है
फूल रोपे थे
बंजर दिल तेरा
कैक्टस उगे
देखा जो तुम्हे
लगे गुनगुनाने
गुजरे लम्हे
हम हैं वहीँ
और तुम भी वही
वक्त बदला
तुम सागर
मैं होती जो सरिता
मिलन होता
पूछा जो तूने
कभी प्यार किया है
तडपा जिया
जख्मी है जिया
तुम ही मरहम
बेदर्दी पिया
प्रेम तुम्हारा
शब्द बंधन परे
कागज़ कोरा
कोई न राम
अभिशप्त अहिल्या
रही पाषाण
मन में बसा
पत्थर का देवता
बूत ही रहा
जलाये जिया
सुमन आली प्रीत
परदेशिया
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