BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

ठण्ड है भाई


उषा सुंदरी
घूँघट से देखती
शर्माते गिरि


सोया सूरज
कुहासे की रजाई
ठण्ड है भाई

बुड्ढी हड्डीयां
आ गयी सहलाने
जाड़े की धुप
मंजिले वही 
कुहासों ने निगले 
डगर सभी


बर्फ ही बर्फ 

भीतर या बाहर
है हिमयुग

हो रही सांझ
ठिठुर रहे रिश्ते
खोजते ताप

धुप की ताप
पिघला नही पाई
रिश्तो की हिम

सर्द है रात
तेरी यादो ने छुआ
जलेअलाव




क्रांति मशाल

हिममानव ढोते
अच्छा मजाक




पर्वत चोटी

हिम चादर ओढ़े
रण में डटी

पर्वत माला
साल भर ओढती
हिम दुशाला

श्वेत चुनड़ी
पहने हरी साड़ी
हिंद सुन्दरी


बरसो बाद 

पिघला ग्लेशियर 
मिला जो खत









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