BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

नन्हा गुलाब



नन्हे ये पंछी
सपनो में उड़ते
ऊँचे से ऊँचे

नन्ही हसती 
बाबुल बचपन 
जिन्दा करती 





 पाकर धूप
खिल उठे सुमन 
निखरा रूप 

नन्हा गुलाब
बगिया में अकेला
रहे उदास



लादे सपने
बचपन खोजते
नाजुक कंधे

हॅसते फूल
मुर्झा न जाये कहीं
कड़ी है धूप

प्रतिस्पर्धाएँ
हारता बचपन
माँ -बाप जीते

जूही के ख्वाब
बन जाऊँ  गुलाब
माली खातिर



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