BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

शारदोत्सव



रास पूर्णिमा 
खेल रहे डांडिया 
सिन्धु चंद्रमा 

ब्रह्म मुहूर्त
बिछते पारिजात
सूरज पथ

खिली कपास
धरा ने लहराए
धवल केश 

ढोल की  थाप
झूमे  शिउली कास
शारदोत्सव 

रात अकेली 
खिल कलियाँ  टूटी 
हरसिंगार 



बुझी शिउली 
हँसती  कुमुदनी 
निर्मम सखी 

कास सुमन
लुटी हुयी वसुधा
ढाँपती तन

वर्ष विगत
सुखा रही है धरा
श्वेत कुंतल

पूनो की रात
बदली में मयंक
गोपी उदास 

मैं नहीं पिया 
मौसम हरजाई 
बदल गया 


















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