रास पूर्णिमा
खेल रहे डांडिया
सिन्धु चंद्रमा
ब्रह्म मुहूर्त
बिछते पारिजात
सूरज पथ
खिली कपास
धरा ने लहराए
धवल केश
ढोल की थाप
झूमे शिउली कास
शारदोत्सव
रात अकेली
खिल कलियाँ टूटी
हरसिंगार
बुझी शिउली
हँसती कुमुदनी
निर्मम सखी
कास सुमन
लुटी हुयी वसुधा
ढाँपती तन
वर्ष विगत
सुखा रही है धरा
श्वेत कुंतल
पूनो की रात
बदली में मयंक
गोपी उदास
मैं नहीं पिया
मौसम हरजाई
बदल गया
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