रामेश्वर काम्बोज भैया जी को हार्दिक आभार जिन्होंने इसे इस पत्रिका में स्थान दे कर मेरा मनो बल बढ़ाया ।
ऑनलाइन नीचे दिए गए लिंक पर पढ़ी जा सकती है ये पुस्तक
http://www.vibhom.com/hindichetna.html
चहकी भोर
गूंज उठी दिशायें
सन्नाटे रूठे
चल रे मना
छँट जायेगा शीघ्र
कोहरा घना
उधड़े रिश्ते
जतन से सिलती
जोड़ दिखते
जीवित रिश्ते
लड़ते झगड़ते
मुर्दा न बोले
रोती गुड़िया
किताबो में खो गयी
नन्हीं परियां
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