१)
पीत चुनर
बौर झुमके लाया
पिया वसंत
२)
आये न कंत
झुलसाये है जिया
हवा बसंती
३)
निगली बौर
विकिरण राक्षसी
बसंत मौन
४)
प्रणयी नभ
दुल्हन बनी धरा
धुंध उपर्णा
५)
अवनि वधु
धुंध अन्तरपट
व्याकुल नभ
६)
छंटे बादल
सहेजती वसुधा
प्रीत के पल
७)
अहो !वसंत
अमराई में गुँजे/ वीराने में गूंजते
कोकिला स्वर
८)
धूप के खड़ा
बाँट रहा पलाश
रंग प्रीत का ।
९)
ग़ाँव की सीमा -
आ लिपटी गले से
हवा वसंती
१७
अधूरी कृति -
झेलती रात भर
दर्द प्रसूति
११)
ठंड इतनी
सिकुड़ने लगी है
खुली खिड़की
ग़ाँव की सीमा -
आ लिपटी गले से
हवा वसंती
१७
अधूरी कृति -
झेलती रात भर
दर्द प्रसूति
११)
ठंड इतनी
सिकुड़ने लगी है
खुली खिड़की