BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

मानवता के बीज


बनी है बाती
चंद बूँदें रक्त की 
जले चिराग

जिन्दा है अभी 
मानवता के बीज 
खिलेंगे कभी 

कोई बो रहा 
मानवता के बीज 
बनो बदरा /सींच दो जरा 

प्यास बुझाती 
उदारमना नदी 
पूछे न जाति 

ताप संगत 
खिले गुलमोहर 
नव रंगत 

खोलो खिड़की 
दस्तक देता रवि 
धुंध को चीर 

रौशनी लाई 
पर्दे से छन आई 
महीन धूप 

सूखती बाती 
टिमटिमाता दीप 
तेल की आस 


बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

ज्योति पर्व है



ज्योति पर्व है 
जले प्रीत के दीप 
यही मर्म है 


जले जो दीप
दया धर्म प्रीत का
मिटे तमस

नभ प्रांगण
तारक दीपमाला
 चन्द्र कंदील

ज्ञान के दीप
अमूल्य है पुस्तकें
रद्दी न तोले

राह दिखाते
टिमटिमाते दीप
जुगनू  नन्हे

कोई आया है
अँधेरी बस्तियों में
दीप लाया है


जलाये दीप 
अन्धो की बस्तियों में 
रहा अँधेरा 


दीप कहता
जब तक है श्वाँस
योद्धा विजेता

दीप सन्देश
आखरी दम तक
छोडो न आस

बेचो  कबाड़
ज्ञानदीप किताब
करना दान

लक्ष्मी की आस
 द्युतरत  झुग्गियाँ
दीप उदास

रंग रोगन
चमक उठे घर
दीमक लगे

देखे झोपड़
महलों के सपने

खेले चौपड़

मावस रात्रि 
एक दीप जला  दो 
थमे न राही 

देता पहरा 
उम्मीदों का दीपक 
मन देहरी 

प्रतीक्षा रत 
देहरी पर दीप 
सांझप्रहर 

अपने दूर 
बेरंग लगे होली 
उदास दीये 


विद्युत लड़ी
सजाती है कोठियाँ

झुग्गी को दीया


दिल से दिल
मिले दीप से दीप
हँसे उजाले