BLOG DESIGNED BYअरुन शर्मा 'अनन्त'

बुधवार, 28 अगस्त 2013

पायल रूठी


पायल रूठी 
बैठी जमुना तट 
बाट जोहती 
आवन कही गयी 
बांसुरी झूटी 
अबहूँ नही आयी 
हुयी गोधुलि 
कदंब के हिंडोले 
कालिंदी तट 
चिढाये रहे मोहे 
बैरन बंसी 
बिसुर गयी मोहे 
रचाये रास 
मगन गोपी संग 
मैं जलूँ  विरहाग्नि
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नाचे मयूर
सजे कान्हा मुकुट
है बड़े भाग
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मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो पर आधारित एक चोका 

माखन चोर
करत तकरार
बालक निको
मटकी भयि ऊँची
बहियाँ छोटी
 माखन कैसे खाऊं
भोर प्रहर
गैयाँ संग भटकूँ
घर फिरयो
संध्या समय तब
बैरी है ग्वाले
 करके बरजोरी
मोरे मुखरे
माखन लपटायो
सुन बतिया
हर्षित महतारी
लेती बलैया
नटवर नागर
चूम हिये लगायो



सोमवार, 26 अगस्त 2013

बंशी की धुन



मनमोहना 
छेड़ बंशी की धुन 
मिटे ना तृष्णा 

कृष्ण कन्हैया 
देखा तेरा मुखड़ा 

हुआ सबेरा 

माखन चोर 
मटकी भयि  ऊँची 
थाम ले बांह 


छलक रही 
पाप भरी गगरी 
तोड़ो हे हरी


देख अधर्म 

बैरन  बंसुरिया 
क्यूँ है तू  मौन  …।!!


बाजी  न हारी 
फिर भी लुट रही 

आज की नारी 


लुटती नार 
भूले दौपदी सखा 
वादा क्यूँ आज  ….???






बुधवार, 14 अगस्त 2013

जश्ने आजादी







सोन चिरैया

उड़ी पंख पसारे

तोड़ बेड़ियां

जश्ने आजादी
शहीदों का तोहफ़ा

ऋणी भारत


स्व - को सम्हाले
तंत्र - है मजबूत
भारत वर्ष

बाँधे सेहरा

चला मृत्यु वरण को 
रणबांकुरा

चुमते शोले
आजादी के दीवाने
दुश्मन जले



दूंगा आहुति
भड़की जो युद्धाग्नि
ना रो भारती


प्यारी आजादी
अमुल्य कुर्बानियां

यूँ ही गँवा दी


मरते नहीं
जवान मर गया
आँखों का पानी

ऐंठा सुमन
गुंथा विजयमाल
रोता चमन


करूँ अर्पण
देश के रखवाले

श्रद्धा सुमन


आजाद देश
गुलाम लोकतंत्र
मची है  क्लेश

रक्त पिपासु 
परजीवी  शासक
रुग्ण जनता

खोखला करे
सत्ताधारी दीमक
देश की जड़े

माता  कराही
लूट  रहे अस्मत
खद्दरधारी

करते दंगा
पहन के तिरंगा
तंत्र है गुंगा

जो है जैसा है
भारत  महान है
मुझे प्यार है


गुरुवार, 8 अगस्त 2013

रिमझिम सावन



लगाये झड़ी
रिमझिम सावन
अँखियाँ बूढी

बादल दिखे
हरियाली सपने
आँखों में चीखे

लौटा सावन
लौटेंगी बहारे भी
उम्मीदें हरी

सावन मास
तांडव नृत्य कहीं
रचता रास

सावनी घटा
बेशकीमती रत्न
वृथा न लुटा

श्रावणी मेले
याद आये  बाबुल
गोदी के झूले

मनाती तीज
चुनड हरी ओढ़े
रूपसी मही 

हुयी जवान
नदिया बरसाती
हदें तोड़ती

सावनी घटा
ठहर कुछ पल
राहो में पिया

फिर बरसी

वादों की बदरिया

जनता प्यासी



वादों के मेघ

बरसे रुक रुक

भीगे है देश 


भूखी जनता

वादों  की रोटी सेंके

देश के नेता



कल का वादा

बीत गए बरसों

आज भी ताजा

जीवन रथ


खींच रहे है
घिसे पिटे पहिये
जीवन रथ

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फ़ुस्स्स हो गये
मेड  इन  चाइना
पहिये नए

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सुस्ताना चाहे
ढलती हुयी धूप
खजूर तले

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चुप लहरें
देखती अपलक
ज्व़ार का नृत्य 

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कच्चे धागे



 पिरोयी  माला
चुन मुक्तक  सच्चे
धागे थे कच्चे

तोड़ो भी मौन
बादल  या सूरज
तुम  हो कौन.??

जग के नाते
पल पल बदले
ऋतु हसते

एक बीहड़
जाने कब पनपा. !!
मेरे भीतर

रात चाँदनी
गहराया है तम
हिय प्रांगन

नारी चेतना
स्वर्णिम पैजनिया
वही वेदना